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* जिनवाणी संग्रह
जासु दूर होत संकटमें सहाई ॥१॥ कल्पवृक्ष कामधेनु चिन्तामणि जाई । ऋद्धि सिद्धि पारस तेरे प्रगटाई ॥२॥ मंत्र जन्त्र तन्त्र सब जाही बनाई। सम्पति भण्डार भरे अक्षय मिधि आई ॥३॥ तीन लोक माहिसार वेदनमें गाई । जगमें प्रसिद्ध धन्य मंगलोक भाई॥४॥
४६ भागधन्दकृत प्रभाती परणति सब जीवनकी तीन भांति वरणी। एक पुण्य एक पाप एक राग हरणी ॥ टेक ॥ जामें शुभ अशुभ बन्द बोतराग परणति भव समुद्र तरणी ॥ १ ॥ छांडि अशुभ क्रिया कलाप मत करो कदाचि पाप शुभमें न मगन होय अशुद्धता विसरणी ॥२॥ यावत ही शुभोपयोग तावत ही मन उद्योग तावत ही करण योग कही पुण्य करणी ॥३॥ भागचन्द्र जा प्रकार जीव लहे सुख अपार याको निरधार स्यादबादकी उचरणी ॥४॥
___ ५० जैनदासकृत प्रभाती उठि प्रभात पूजिये श्री आदिनाथ देवा। आलसको त्याग जागि पूजा विधि मेवा ॥ टेक । जल चन्दन अक्षत प्रीति सम लेवा । पुष्पते सुवास होय काम जरि जेवा ॥ १ ॥ नैवेद्य उज्वल करि दीप रतन लेवा। धूपते सुगन्ध होय अष्ट कर्म खेवा ॥ २ ॥ श्रीफल बादाम लोंग डोंडा शुभ मेवा । उज्वल करि अघ पूजि श्रीजिनेन्द्र देवा ॥३॥ जिनजी तुम अर्ज सुनो भवधि उतरेवा। जैनदास जन्म सुफल भगति प्रभू एवा ॥ ४॥
५१ मपानीका प्रभाती ताण्डव सुरपतिने जहां हर्ष भाव धारी। ॥ टेक ॥ रुनु रुनु