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* जिनवाणी संग्रह
वानके सिरपर तीन छत्रका फिरना, ४ भगवानके पीछे भामण्डलका होना, ५ भगवानके मुखसे दिव्ध्वनिका होना, ६ देवाके द्वारा पुष्पवृष्टिका होना, ७ यक्षदेवोंद्वारा चोसठ चंवरोका दुरना, दुंदुभी बाजोका बजना ये आठ प्रातिहार्य है 1
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अनन्तचतुष्टय |
ज्ञान अनन्त अनन्त सुख, दरस अनन्त प्रमान ।
बल अनन्त अरहंत सा, इष्टदेव पहिचान || १५|| अर्थ - १ अनन्तदर्शन अनन्तज्ञान, ३ अनन्तसुख, ४ अनन्तवीय जिसमें इतने गुण हा, वह अरहन्त परमेष्टी है । अष्टादशदोषवर्जन 1
जनम जरा तिरषा क्षुधा विस्मय आरत खेद | रोग शोक मद मोह भय निद्रा चिन्ता खेद ॥ १६ ॥ राग द्वेष अरु मरण जुन, यह अष्टादश दोष । नाहिं होत अरहंतके सो छबि लायक मोप ।
अर्थ - १, जन्म, २ जरा, ३ तृषा, ४ क्षुधा, ५ आश्चर्य, ६ अरति (पीड़ा), ७ खेद, (दु:ख), ८ रोग, ६ शोक. १० मद, ११ मोह, १२ भय, १३ निद्रा, १४ चिन्ता, १५ पसीना, १६ राग, १७ द्वप, १८ मरण ये १८ दोष अरहन्त भगवानमें नहीं होते ॥ १७॥
सिद्धोंक ८ गुण ।
समकित दरसन ज्ञान, अगुरलघु अवगाहना । सूच्छम वीरजवान निराबाध गुन सिद्धके ॥१८
अर्थ -१ सम्यक्त्व, २ दर्शन, ३ ज्ञान, ४ अगुरुलघुत्व, ५ अव. गाहनत्व, ६ सूक्ष्मत्व, ७ अनन्तवीर्य्य, ८ अव्यावाधत्व ये सिद्धों के ८ मूलगुण होते हैं |