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जिनवाणी संग्रह। परम पावन पुन्य दाइक अतुल महिमा जानिए। है अनूप सरूप गिरिवर तासु पूजा ठानिए ॥ ८ ॥ दोहा-श्रीसम्मेद शिखिर महा, पूजों मनवचकाय ॥ हरत चतुरगति दुःस्त्र को, मन वांछित फल दाय ॥ उन्हीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्ध क्षेत्रभ्यो अत्रावतराव. तर संवौषट् इत्यालाननम् परि पुष्पाञ्जलि क्षिपेत् ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्परि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । ओह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रभ्यो अत्रमम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं परि पुष्पाञ्जलि क्षिपेत् ।
अष्टकं । अडिल्ल छन्द-क्षीरोदद्धि सम नीर सु उज्जल लीजिये। कनक कलस में भरके धारा दीजिये ॥ पूजौं शिविर सम्मेद सुमन वचकाय जू । नरकादिक दुःख टरै अचल पद पाय जू॥ ॐहीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रोभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल। पयसौं घिस मलयागिर चन्दन ल्याइये । केसर आदि कपूर सुगंध मिलाइये॥ पूजौ शिखिर० चन्दनं । तंदुल धवल सु उज्जवल खासे धोयके । हेम वरनके थार भरौं शुचिहोय के ॥ पूजौं शिखिर० । सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षय पदप्राप्ताय अक्षतं ॥३॥ फूल सुगंध सु ल्याय हरष सौ आन चढ़ायौ । रोग शोक मिट जाय मदन सब दूर पलायौ ॥ पूजौं० पुष्पं ॥ षट् रस कर नैवेद्य कनक थारी भर ल्यायो॥ क्षुधा निवारण हेतु सु पूजो मन हरषायो आपूजौ शिखिर० नैवेद्य ॥ लेकर मणिमय दीप सुज्योति उद्योत हो । पूजत होत स्वशान मोह तम नाश हो ॥ पूजों लिखिर० । दीपं ॥६॥ दस विधि धूप अनूप अग्नि मैं खेवहूं। अष्ट कर्मको