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ग्यारह प्रतिमा स्वरूप।
सामायक पतिमा स्वरूप-गोतका छंद-सब जियन में समभाव धर शुभ भावना संयममहीं, दुरध्यान आरत रौद्र तज कर त्रिविध काल प्रमाणहीं। परमेष्ठि पन जिन वचन निज बृष बिम्ब जिन जिनग्रह तनी, बंदन त्रिकाल करह सुजानहु भव्य सामायक धनो ॥ ३॥
पोषध प्रतिमा स्वरूप- ( पद्धरी छंदवर मध्यम जघन्य त्रिविध धरेय, प्रोषध विधि युत निजबल प्रमेय, प्रति मास चार पत्रो मझार, जानष्टु लो प्रोषध नियम धार ॥४॥
सचित्तत्याग पतिमा स्वरूप-चौपाईजो परि हरे हरी सब चीज, पत्र प्रवाल-कंद फल-बीज, अरु अप्रासुक जल भी सोय, सचित्त त्याग प्रतिमा धर होय
रात्रिभुक्तत्याग पतिमा स्वरूप-अडिल्ल छन्दमन बच तन कृत कारित अनुमोदै सही, नवविध मैथुन दिवस माहिं जो बर्ज हो । अरु चतुबिध आहार निशा माहो तजै. रात्रिभुक्ति परित्याग प्रतिमा सो सजे ॥६॥
ब्रह्मचर्यप्रतिमा स्वरूप-चौपाईपूर्व उक्त मैथुन नव भेद, सब प्रकार तज निरस्नेय, नारि कथादिक भी परिहरे ब्रह्मचर्य प्रतिमा सो धरे ॥ ७ ॥
आरंभ त्याग प्रतिमा स्वरूप-चौपाईजो फछु अल्प बहुत अघ काज, ग्रह सबंधी सो सब त्याज, निरारम्भ व्हे वृष रत रहै, सो जिय अष्टमो प्रतिमा वहै ॥८॥