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________________ श्रावक की ५३ किया। श्रावकके ८ मूलगुण-५ उदबर । ३ मकार । १२ व्रत-५ अणुव्रत, ३ गुणवत, ४ शिक्षाप्रत । ५ अगुणवत-१ अहिंसा अणुव्रत, २ सत्याणुवत, ३ परस्त्री त्याग अणुवत, ४ ( अचौर्य ) चोरी त्याग अणुवत, ५ परिग्रहप्रमाण अणुव्रत। ३ गुणवत-१ दिगवत २ देशवत, ३ अनर्थदंडत्याग। ४ शिक्षाबत-३ सामायिक, २ प्रोषधोपवास, ३ अतिथि-संविभाग, भोगोपभोगपरिमाण । .१२ तप आचार्यके ३६ गुणोंमें लिखे हैं। इनके भी वही नाम । श्राव कोंके अणुव्रत कम परीषहवाले। ११ प्रतिमा–दर्शनप्रतिमा, व्रत, सामायिक, प्रोषधोप वास, सवित्तत्याग, रात्रिभुक्ति त्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भ त्याग, परिग्रहत्याग, अनुमति, त्याग, उहिष्ट त्याग। चारदान-आहारदान, औषधदान, शास्त्रदान, अभयदान ३-रत्नत्रय सम्यग्दर्शन, सम्यगज्ञान, सम्यक्चारित्र । दातारके २१ गुण-2 नवधाभक्ति, ७ गुण ५ आभूपण । यह २१ गुण दातारके हैं अर्थात् दान देनेवाले दातामें यह २१ गुण होने चाहिये। नवधाभक्ति-पात्रको देख बलाना, उच्चासनपर बैठाना,
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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