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स्तोत्र भूधरदास कृत ।
रमनीके सही ॥ अहमेन्द्र इन्द्र नरेन्द्र सुखकी तास उपमा है नहीं ॥ यासे तिन्होंके एक सौ तिरकाल गुण नित ध्याइये । उर नेम धरके पंच पदके पंच मंगल गाइये ॥ १ ॥ सम चतुर संस्थान सुगन्धित तन लसे । एक सहस्र गणि आठ सुलक्षण शुभ बसे || मल मूत्र नहीं होय पसेव न होइये । क्षीर वर्ण वर रुधिर अतुल बल जोइये ॥ जोइये हितमित बचन सुन्दर रूपका ना पार जी । लख
वज्र वृषभ नाराच्य सहनन जन्म दश गुण धारजी ॥ सुरभिक्ष योजन एक शतलों चार दिश जानिये । छाया विवर्जित चार आनन गगण गमन बखानिये ॥ २ ॥ नहीं बढ़े नख केश सकल विद्याधनी । प्राणी वाधा रहित सहिज अतिशय बनी ॥ नहि होय उपसर्गाहार कवला नहीं । नेत्र नहीं टमकार ज्ञान गुण दश सही ॥ सही सब हो जीव केरे भाव मंत्री तहां बसें । सकलार्थ मागधी होय भाषा सुनत सब संशय नशें ॥ सब लोक में आनन्द बर्ते भूमि दर्पण सम छजे । आकाश निर्मल धान्य सब ही एकठे हो नीपजे
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॥ ३ ॥ छः ऋतु के फल फूल फलें इकबार ही । भू तृण कंटक आदि रहित सुखकार हो ॥ मन्द सुगन्धि चले पवन सकल जन मन हरें । गंधोदक की वृष्टि गगणसे सुर करें ॥ करें जय जय कार मुख से शब्द सुर आकाश में। सुर हेम कमल विहार करते धरत पद तल जास में । अष्ट मङ्गल द्रव्य राजय धर्म चक्र बले तहां । ये देव कृत गुण जात चौदह जोड़ सब चौतिस यहां । सोहे वृक्ष अशोक शोक हर लेत है। दिव्य ध्वनि सुन जीव मिथ्या तज देत हैं || सुरकृत पुष्प स वृष्टि चमर चौंसट दुरें | भामण्डल सुर गगण नाद दुंदुभी करें ॥ करें अपने हेतु को ये क्षत्रत्रय
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