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स्तोत्र भूदरदास कृत ।
चौपाई। . प्रभु इस जग समर्थ ना कोय । जासे तुम यश वर्णन होय । चार ज्ञान धारी मुनि थकें। हमसे मन्द कहाकर सकें। २ ॥ यह उर जानत निश्चय कीन । जिन महिमा वर्णन हम कीन ॥ पर तुम भक्ति थके वाचाल । तिस बस होय गहूं गुण माल ॥३॥ जय तीर्थंकर त्रिभुवन धनी । जय चन्द्रोपम चूडामणी ॥ जय जय परम धाम दातार । कर्म कुलावल चूरण-हार ॥ ४ ॥ जय शिव कामिन कन्त महन्त । अतुल अनन्त चतुष्टय वन्त ॥ जय २ आश भरण बड़ भाग । तप लक्ष्मीके सुभग सुभाग ॥ जय २ धर्मध्वजा धर धीर । स्वर्ग मोक्षदाता वरवीर ॥ जय रत्नत्रय रत्न करण्ड । जय जिन तारण तरण तरण्ड ॥ ६ ॥ जय २ समोशरण शृङ्गार । जय संशय बन दहन तुषार ॥ जय २ निर्विकार निर्दोष । जय अनन्त गुण माणिक कोष ॥७॥ जय जय ब्रह्मचर्य्य दल साज । काम सुभट विजयी भटराज ॥ जय जय मोह महा तरु करी। जयजय मद कुजर केहरी ॥ ८॥ क्रोध महानल मेघ प्रचण्ड । मान मोहधर दामिन दण्ड ॥माया वेल धनंजय दाह । लोभा सलिल शोषण दिन नाह ॥ ८ ॥ तुम गुण सागर अगम अपार । ज्ञान जहाज न पहुचे पार ।। तट हो तट पर डोले सोय । कार्य सिद्धि तहां ही होय । १० ।तुम्हारी कीर्ति बल बहु बढ़ी। यत्न बिना जग मण्डप चढ़ी। और कुदेव सुयश निज चहैं। प्रभु अपने थल हो यश लहैं ॥ ११ ॥ जगति जीव घूमें बिन ज्ञान । कीना मोह महा विष पान ॥ तुम सेवा विष नाशक जड़ी। तह मुनि जन मिल निमय करी ॥ १२ ॥ जन्म जरा मिथ्या मत मूल। जन्म मरण