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श्री नेमिनाथ राजीमती बारहमास सवैया घनघोर घटा धन की उनई विजुरी चमकंत जलाहलसी, बिच गाज अवाज अगाज करत सु लागत मोहि कटारी जिसी। पपीया पीउ-पीउ करें निसवासर दादुर मोर वदं उलसी, असे श्रावण में सखी नेम मिले सुख होत कई जसराज रिपी ।।१।। आदव रेन मे मेन सतावत नेनन नींद पर नहीं प्यारी, घटा करि श्याम वरपित मेह वहै मारि नीरह नीर अपारी । सूनी मो सेज सुखावत नाहि ज कंत विना भई में विकरारी, कदै जसराज भणै इसे राजुल नेमि मिलै कब मो दईयारी ॥२॥ माम आसोज सस्त्री अब आयो संजोगण के मन माहि सुहायौ, कारे धुसारे कहुं सित वादर देखत ही दुख होत सवायो। । चंद निरम्मल रेंण दीपा जसा अलवेसर कंत न आयो, राजल ऐसें सखी सुं कहै पट मास वरावर द्युस गमायो ३॥॥ कातिक काम किलोल बिना विरहानल मोहि न जाति सखी री, अंधारी निसा सुख न मे सूती थी प्रीतम प्रीतम ऐसें झखीरी। मैं पीर कीन पै मोहि तजी उण प्रीत चलै कैसे एक पखी री, कहै जसराज वदं ऐसें राजल कंत विना न दीवारी लखी री ॥४॥ मिगस्सिर आयो कहै सहेली री सीत अनीत अवें प्रगटाणी, कामण कंत दोऊ मिल सोवत रेण गमावत होत विहाणौँ । छोरि त्रीया निज दूषण पाखै रह्यो किण कारण वैठ के छांनो, राजल वात को जसराज यदुष्पति मोहि कह्यौ क्यों न मान्यों ॥५॥