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जिनहर्ष ग्रंथावली
सामायक पोपध नवकार, जिनवंदन गुरुवंदन वार। .. . धरम ठाम आलस आवीयउ, पहिलट ए आलस काठीयउ ॥ छईया छोड़ी रामति रमइ, नारी विरहट खिणि नवि खमइ। मोह विलूधउ मूढ गमार, बीजउ मोह काठीयउ वारि ॥३॥ दान शील तप भाव सु धर्म, गुरुस्यं कहिस्यइ अधिकड मम । गुरुनी एम अवज्ञा वहइ, जीजउ अवज्ञा काठीयउ कहे ||४|| गुरुनइ नींचउ थई वांदिवउ, साहमी आव्यां वली ऊठिवउ । मई थाये नही जावें राउं, थंभका ठीयउ चो) का ॥शा साहमी सुं मिलि वेसे सदा, कलह थयउ किणिही सुं कदा। धरम ठाम वलतं नावेह, पंचम क्रोध काठीयुएह ॥६॥ आवे नयण उघ अनन्त, बइठउ जाये नहीं एकंत । विकथा विषय तणउ स्वादीयउ, छठउ काउ प्रमाद काठियउ ॥७॥ धरम ठाम खरच्यउ जोईये, फोकट इम किम वित खोईयइ । वीहतउ जाइ न पोपधसाल, सातमउ लोभ काठीयउ भालि ॥८॥ जउ मुनि पासि वइसीस्ये घडी, तउ कहीस्ये ल्यउ काई आखड़ी। मुझ सुं तेह पलइ नहीं समउ, एह काठियउ भय आठमउ ॥६॥ कोई कहीयई मअउ हवा, तेहनह सोगंड निसि दिन रुवे। कउनइ धरम करे गमइ, सोग काठियउ नवमउ इमइ ॥१०॥ अम्हें न समझे गुरु आख्यान, तवन सझाय न समझु ज्ञान । स्युं करीए पोसालई जाइ, दसमल अज्ञान काठीयउ थाइ ॥११॥