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नवग्रह गर्भित मदोदरी वाक्य स्वाध्याय ४६५ ताहरइ बहु अन्तेउरीजी, सुन्दर देव कुमारि ॥३मो।। दिन दिन मंगलमालिकाजी, दिन दिन सुखनी वृद्धि । 'जाती देखं छु हिवे जी, सगलि रिद्धि समृद्धि ॥४मो।।
बुद्धि किहाँ ताहरी गई जी, वसती जेह कपाल । पिणि छठीना अक्षराजी, कोई न सके टालि ॥५मो॥ मइ सद्गुरु मुखि सांभल्यउ जी, शास्त्र तणी वली नेठि। परनारी ना संग थी जी, कीचक कभी हेठि ॥६मो। सुक्र रुहिर संयोग थी जी, ऊपनु एह सरीर । स्यं देखी ने मोहिया जी, कंता सुगुण सधीर ॥७मो।। थावर दृढ़ व्रत तउ धणी जी, परदारा तजि एह । पर दारा परतखि छुरी जी, तिणि सुं न करि सनेह ॥८मो।। निज कुल राह न लोपीयेजी, करिये नहीं अन्याय । वेद पुराण इम का जी, राज्य अन्याये जाय ॥६मो॥ केतु सरीखर वंस में जी, तुं कंता गुण जाण । । त्रिभुवनपति नारी तजउ जी, जउ वांछठ कल्याण ॥१०मो।। सतवंती सीता सती जी, एहने चरणे लागि । लइ एहनी आसीस तुं जी, जउ तुझ सावल भाग ॥११मो।। कान माने कंतडा जी; स्यं कहीये तुझ साथ । सूतउ सिंह जगांडीयउ जी, रोसवीयउ रुघनाथ ॥१२मो।। नवग्रह रूठा तुझ थकी जी, जाणीजई छई आज। । तिणि'मति एहवी ऊपनी जी, करिवा एह अकाज ॥१३मो॥