SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुभद्रा सती स्वाध्याय सुभद्रा सती स्वाध्याय ढाल ॥ अरघ मडित नारि नागिलारे ॥ एहनी सील सलूणी सुभद्रा सतोरे, नामथी थाये निस्तार से | सानिधि कीधी जेहने देवतारे, थयउ जेहनउ जयकाररे ॥ १सी || नगर वसंतपुर मां धनी रे, सेठ वसे धनदत्त रे । तास सुता सुभद्रा भली रे, धरम रातउ जेहनउ चित्त रे || २सी || रूपेरे नागकुमारीकारे, सुर कन्या सुकमाल रे । तात परणावे नही साहमी विनारे, मोटी थई ते बाल रे || ३ || चंपानयरी नउ तिहां व्यापारीयुरे, मिध्यात्वी नामे बुद्धिदासरे । - नयणे ते दीठी कन्या फुटरी रे, परणेचा इच्छा थई तासरे || ४सी || कपट श्रावक थई परणीयउ रे, लेई आव्यउ निज गाम रे । धरम करे रे जिनवर तणउ रे, जयणासं सहुकरे काम रे || ५सी || मुनिवर आयल एक अन्यदारे, वहिरावड़ सूझतउ आहार रे । आंखि झरइरे पाणी नीकले रे, त्रिणउ दीठउ आंखि मझार र े ॥६॥ जीभ सुं काव्य' रिपि वहिरि गयुंड र, तिलक सतीनउ चउटउ मीसरे सासू कलंक सिरि चाडीयड रे, धरम कलंक्यउ वीसवा वीसरे ||७|| काउसग लेई ने ऊभी रही रे, कहे सासणदेवि आय रे । कां रे सुभद्रा अभिग्रह कीयुरे, कलङ्क ऊतारउ मोरी मायरे ॥८॥ काहि चंपाना दरवाजा जडीरे, कहीसुं चालणीये काढी नीररे । सतीरेसिरोमणि छांटिस्येरे, पउल ऊघडिस्य साहस धीर रे ॥ ६ ॥ तुझ विणि कांइन ऊघाडिस्यइरे, इम कहीने गई देवि रे । } ४६३
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy