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________________ कलियुग आख्यान ४३३. आगलि चाल्यउ नृप निरभीक, एक चंपक दीठउ सश्रीक । पासइ एक समी नउ वृक्ष, वन माहे दीठउ नृप दक्ष ।-१०. समी वृक्षनइ - पूजइ सहुं, चोवा चंदन लेपइ चहुं। आगलि नाटक करइ अनेक, रायइ दीठउ एह विवेक ।-११ पुष्फपत्र फर मरीया घणां, छत्राकारइ सोहामणा । तेहनी कोइ न पूजा करइ, राजा देखी अचरिज धरइ ।-१२ वालाग्रइ वॉधी वकिला, आकासइ लंबित रही सिला। राजा अचरिज नउ ख्यालीयउ, देखोनइ आगलि चालीयउ-१३ __ तरुअर वधियउ फलनइ काज, फल दुखदाई दीठा राज । __ आगलि दीठउ लोह कड़ाह, सुंदर अनी पाक नउ ठाह ।-१४ ते माहे रंधायइ मंस, देखीनइ थायडु मन भ्रस । आगलि नृप जायइ ज भला, सरप गुरुड़ दीठा तेतलई -१५ पूज अपूजा नयण. निहालि, आगलि चाल्यउ वली भूपाल । गज जूता खर जूता रथई, कलह सनेह निहालई पथई ।-१६ आगलि चाल्यउ जायइ राय, देखीनइ मन विस्मय थाय। सिंहासण वइठउ वायंस, सेवइ तेहनइ उत्तम हंस ।- १.७ एहवा अचरिज दीठी-भूप, मनमइ चिंतइ किसउ सरूप । घरि आव्यउ पिणि मनमा चिंत, जईनइ पूछं, श्रीभगवंत ।-१८. नारायण “नई लागी - पाय, , वेकर जोड़ी. पूछइ राय। मइ दीठा छइ अचरिज एह, टालउ त्रीकम मुझ संदेह !-१६
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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