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श्री थूलभद्र बारहमास
३८३ जिणि कोसि नइ प्रतिवोध देइ, शील समकित दीधरे । धन धन्न ते गणवंत मनिवर. नाम अविचल कीध-रे-॥ असी च्यारि.८४) मिली चउवीसी, नाम रहिस्ये जास रे । जस नाम निरमल थाय रसना, हीये होइ उलास रे ॥ १ ॥ मास मगसिर सीत चमक्यं, प्रीति तोडी नाह रे । तुम्हे जाइ सहीयां कंत ल्यावउ, गयउ देई दाह रे ॥ जिणि पाछिली निज प्रीति छडी, लीय संयम भार रे। कोस्यात नोरी विरह माती. लोयणे जलधार रे॥ मुझ प्राण न रहइ प्राणपति विणि, प्राण जास्ये ऊडिरे । तुमने कहुँ छु वात साची, जाणिज्यो मत कूड रे ।। मुझ मांहि अवगुण किसउ दोठउ, नाह दीधउ छेहरे । मुझ प्राण परि राखतउ प्रिउ, किहाँ गयं ते नेह रे ।। कंत कीधउ कठिण हीयड, मुझ जाणी पीडि रे। जउ जाणती हु एह जास्ये, राखती उर भीडी रे ॥२॥ इणि पोस मासे रोस कीधउ, दोष दोषइ कत रे। तुम्हे सखी पूछउ कंतनइ जई, किसी तमने चिंत रे ॥ हुँचमकि ऊ एकली निसि, निरखि जोउ नाथ रे । तउ नाथ देखू नहीं पासे, भुंइ पड्या वे हाथ रे ॥ मइ कदी तुझ नइ पूठि नापी, मुझ देई गयउ पूठि रे। दुख ताप विरह लगाइ तउ, चलियउ तुं ऊठि रे॥ । मुझ एकली नइ सीत व्यापे, काम कापइ अंग रे ।