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श्री चतुर्विंशति जिन बोधक नमस्कार ३१६ चउवीसे सिवगामीया, मइ पामीया रे।
, तारण तरण तरंड ॥ जि १० ॥ प्रात समय संभारीयइ, दुख वारीयइ रे।।
कहइ जिनहरख जिणंद ।। जि ११ । । । चतुर्विशति जिन बोधक नमस्कारः श्री नाभेय नमुं सदा, सिवरमणी भरतार । प्रणमंतां पातक टलइ, नाम थकी निस्तार ॥१॥ अजित अजित कंदर्प जित, कंचण वरण शरीर । जितशत्रु विजया कुलतिलउ, गुण सायर गंभीर ॥२॥ मुगति महल पाम्यउ सहल, वंछित फल दातार । ध्यान धरी निति ध्याईये, संभव जिन सुखकार ॥३॥ अभिनंदन चंदन सरस, सीतल जास वचन्न। . सांभलतां सुख ऊपजे, टाटक व्यापइ तन्न ॥४॥ सुमति सुमति दायक सदा, टाले कुमति कलेस । दुख्यहरण कंचणवरण, कीरति देस विदेस ॥ ५ ॥ पाप गमण विद्रुम वरण, भवजल निधि बोहित्थ । पद्मप्रभ पद प्रणमतां, थाये भव सुकयस्थ ॥ ६ ॥ तारउ सेवक करि कृपा, सत्तम सामि सुपास । भव भावठि भाजउ हिवइ, आपउ सिवपुर वास ॥ ७ ॥ जेहबउ आसू पूनिमइ, सिसिहर निर्मल हाइ। . . . .