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________________ श्री जिनह ग्रन्थावली श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || महाविदेह खेत्र सुहामणउ || एहनी श्री कलिकुंड जुहारीयर, हीयड़ड़ धरिय उलास लाल रे । जेहन दरसण पामीय, अविचल लील विलास लाल रे ॥ १ श्री ॥ प्रभु दीक्षा लेइ करी, अप्रतिबंध विहार लाल रे । कादंबरी अटवी विचई, कलिगिरि अति विस्तार लाल रे ||२|| कुंड सरोवर सोहतउ, तिहां आवी काउसग कीध लाल रे । हाथी महीधर आवीयउ, जल पीवा सुप्रसीध लाल रे || ३ श्री || प्रभुन देखी पामीयउ, जातीसमरण ज्ञान लाल रे । सरवर जल न्हाई करी, धरतउ निरमल ध्यान लाल रे ॥४ श्री ॥ अनुपम कमल लेई करी, प्रभुजी पासइ आइ लाल रे । देह तीन प्रदक्षणा, प्रभु पग पूजी जाड़ लाल रे || ५ श्री || सुर आवी पूजा करइ, नाटक करइ अपार लाल रे । करकडू चंपा धणी, वांदण आवड तिवार लाल रे || ६ श्री ॥ विचर्या जिनवर तिहां थकी, जिनप्रतिमा सुर कीथ लाल रे । नव कर ऊभी काउसगड़, नृप पूजी फल लीध लाल रे ॥७श्री || राय कराव्यउ देहरउ, प्रतिमां थापी मांही लाल रे । वंछित पूरड़ लोक ना, पातक दूरइ जांहि लाल रे ॥ ८श्री || कलिकुंड तीरथ ते थयड, पहुवी मांहि प्रसिद्धि लाल रे । कलिकुंड पास पसाउलह, लहीयड़ रिद्धि समृद्धि लाल रे || श्री || तेह करी तिहां मरी करी, थयउ तीरथ रखवाल लाल रे । २८६
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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