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________________ २७२ श्री जिनह ग्रन्थावली श्री पास सदाई सहाय हो, दोहरम आवै नहीं काय हो ॥ १० ॥ पुर मंडोवर देस में हो, तारण जलधि जिहाज । मैटे जे सुभ भाव सूं, ते पावे सिधपुर राज हो || माहरी तुम्हने छै लाज हो, वाचक शांतिहरख सहाज हो । जिनहरख कहै महाराज हो, साहिब जी सुपर निवाज हो ॥ ११ ॥ इति श्री कापरहेडा वृद्धि स्तवनं सम्पूर्ण पंडित दयासिंघ लिखितं श्री बीकानेर मध्ये पारस साह नावराणी, प्रतापसी तत्पुत्ररत्न पा० सा० सहसमल्ल पठनार्थ || श्री || सम्वत १७३५ कापरहेड़ा पार्श्वनाथ स्तवन मन मोह्यौ माहरौ रे, होय रह्यो लयलीन । सांवलीया साह तुझ विण खिण न रही सकरे लाल, ज्यूं जल पाखे मीन रे ॥ १ ॥ सा० तै० दरसन दीजै आपणो रे, आपणा सेवक जांण रे । सां० । मोटा चिहुं दिस साचव रे लाल, हितबच्छल हित आण रे || सां० २ || सेवक सह कौ सारिखा रे, लेखस्यो सुविशेषरे । शोभा तोहीज पांमस्यो रे लाल, इणमें मीन न मेखरे || ३ || सां० दरसन ना आगू हुवै रे, दरसन तौ दीजै तास रे । सां० पांणीखी सं पातलो रे लाल, उपगारी हेव पास रे ॥ ४ ॥ सां० इण संसार असार में रे, उवरसी उपगार रे । सां० । मोटा थी मोटा हुवै रे लाल, इम आखै संसार रे ॥ ५ ॥ सां०
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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