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संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन
श्री संखेश्वर पासजी, सांभली मुझ अरदास | सं० । कहड़ जिनहरख हरख धरी, पूरउ मुझ मन आस ॥ १४० ॥ श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन
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ढाल || वीर विराजे वाडिया सीता || एहनी
सदा विराजै सांम संखेसरै हो, पर तिखि पास जिणद । त्रिभुवन मां महिमा महिम है हो, आससेण वामा नंद || १ || स० रूप अनूप अधिक रलियामणौ हो, रहियै सनमुख जोड़ । मोहन मुरति सूरति जोवतां हो, नयणे त्रिपत न होइ ||२|| स० ॐ रात दिवस हियडा मांहे वसै हो, ज्युं गोरी गल हार ।
कदे न साहिब मुझ ने वीसरे हो, वल्लभ प्राण आधार ||२|| स० माहरै तो तुम्ह सेती प्रीतड़ी हो, अविहड़ बणी रे सुरंग । चोल मजीठ तणी परे हो, जन मन होइ विरंग ॥ ४ ॥ स० मधुकर जिम लोभाणो मालती हो, आवै लैण सुवास । ऊडायॉ पिण ऊडै नहीं हो, तिम मुझ मन तुझ पास || ५ || स० अवर सुरासुर दीठा देवले हो, मनड़ै न मानै रे कोइ । तिरखातुर नर अमृत छोड़नें रे, न पीयें खारो तोय ॥ ६ ॥ स ० जरा उतारी जिम तैं जादवां हो, राखी सगलां री लाज । तिम जिनहरख निवाजौ मुझ भणी हो, राखो चरण महाराज | ७|स० इति पार्श्वनाथ स्तवन