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________________ संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन २६७ संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || घडलइ भार मरा छा राजि ॥ एहनी 'अंतरजामि सुणि अलवेसर, महिमा त्रिजग तुम्हारउ । सांभलि आव्यउ हूँ तुम तीरइ, जनम मरण दुख वारउ ॥१॥ सेवक अरज करै छै राजि, मुझनइ शिव सुख आलउ ।आ०। सहु कोना मन वंछित पूरइ, चिंता सहु नी चूरइ ।। एह विरुद छइ राजि तुम्हारर, किम राखट छउ दूरइ ॥२॥से। सेवक नइ विलपिलतां देखी, महिर न मन भां धरिस्थउ । करुणासागर किम कहिवास्यउ, जउ उपगार न करिस्यउ॥३॥ लटपट नउ हिवइ काम नही छइ, परतिख दरसण दोजह । धुंआडइ धीजं नही साहिब, पेट पड्यां धापीजइ ॥४से०॥ श्री संखेश्वर मंडण साहिब, वीनतड़ी अवधारउ । कहइ जिनहरख मया करी मुझनइ, भवसायर थे तारउ ॥॥से०॥ श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || झूवखडानी वणारिंसी नगरी भली, कासी देश मझारि । संखेश्वर पासजी। भव्य लोकने तारिवा, लीधउ प्रभु अवतार |सं०१॥ वामा उर सर हॅसलउ, अश्वसेन राय मल्हार । सं० । वंस इख्यागई ऊपना, त्रिभुवन तारणहार ॥ २ सं० ॥ सागर करुणा रस तणउ, तुं उपगारी एक । सं० ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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