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जिनहर्ष प्रन्थावली
श्री नेमि राजिमती गीतं दाल--थारी तउ खातर हुँ फिरी गुमानी हमा, ज्यं चकवी लांबी डोर ।'
डोर रे गुमानी हमा ज्यु च० एहनी ॥ राजुल कहे रागई भरी, सनेही हंझा। . कांइतु रूठड़उ जाइ, रे सनेही कां ॥ थारे कारणिहुँ खड़ी। स । मुख जोवा यदुराय, राय रे स०मुख ।१॥ वांक दीठउ कोई माहरउ ।स। कइ तउ नाईहुँ दाइ,दाई ४रे स० कइतउ रूपई रूअड़ी।स। मुझ थी दीठड़ी काइ, काइ४ रे स० हुंप्यासी दरसण तणी ।स। दरसण दे मुझ आइ, आइ.४ रेस०), मुझ विरहिणि नइ बालहा ।स। प्रेम अमीरस पाइ, पाइ४ स०१३ तुझ विणि मुझ चकवी परइ । स । झुरत रयणि विहाइ ४ रे सा मेलउ दे मन रंग सु । स। लूंबी झूवी रहुँ पाय, पाय ४ रे स०॥ रतन अमूलक जोवतां ।स। मुझ नइ मिलियर आइ, आइ रे स० छैह देई छिटकी गयउ।स। ते दुख गम्यु न जाइ, जाइ ४ रे सा सु सनेही रूठा हुवइ । स । लीजड़ तास मनाइ, मनाइ ४ रेस० मनदीधउ जिणि आपणउ । स । मिलीये तेहने धाइ, धाइ ४ रे सा तोरण आवी फिरी गयउ । स । गड़बड़ घणी दिखाइ, दिखाइ रे।स। एहवा गुण तुझ माहि छड् । स । तउ तूंकालउ न्याइ, न्याइ रेस इम कहि राजुल रंग सुं । स । प्रिउ हथ संजम पाइ, पाइ रे स० । मुगति गया जिनहरष सुं । स । बेजण सरिखा थाइ, थाइ ४ रेस०