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जिनहर्ष ग्रन्थावली"
छोड़ि वनवास पासे रह्यउ जी, प्रभु चरणे चितलाय ॥४गु.॥ पांचमउ चक्रवर्ति थयउ जी, पूरव पुन्य प्रकार । पट खंड साहिबा मोगवी जी, जिन थया सोलमा सार ॥५गु.।। मेघरथ राय तणइ भवइ जी, इंद्र प्रसंसा कीध । सरणागत बच्छल एहवउ जी, कोइ नहीं परसीध ॥६गु.॥ इन्द्र वचन सुर सांभली जी, चिन्तबई चित्त मइ एम । धरि मनुष्य तणउ किसौ जी, करु परिक्षा धरि प्रेम ।।७गु.।। एक थयउ रे पारेवड़उ जी, थयउ हो लावड़उ एक । राय खोला माहे विहतउ जी, पड़यु पारंवड़ छेक ॥गु.।। हीयड़लइ सास मावइ नहीं जी, चल चित्त निरखीयउ राय । मत मन वीहई तु पंखीया जी, तुझ भय कोई न थाय |गु.।। केमई श्राव्यउ रे हो लावड़उ जी, बइठउ राजा तणइ पासि । वचन कही नृप नइ इसुजी, सांभलि मुझ अरदास ॥१०गु.।।
॥ ढाल -२- जी हो मिथिला नगरी नउ धणी ।। जी हो हुँ भूखइ पीड्यर वणु, जी हो छूटइ छइ सुरु प्राण । जी हो एकेडेइं भमतां थकां, जी हो त्रिगण दिन थया सुजाण ॥११॥
सहाकर शांति नमुचितलाय, जी हो पारेवर जिणि राखीयउ, जी हो पोतानी देह कायास.। जी हो ते माटइ दे मुझ भणी, जी हो माहरउ छइ ए मत । जी हो पर उपगारी तुअछइ,जी हो प्राण जाता मुझ रक्ष ॥१२स।। जी हो मुझ सरणइ आवी रह्यउ, जी हो किम आपु तुझ एह ।