________________
जिनहर्ष ग्रन्थावली
हीयड़उमाहरउ जिम हरखित थाई वारि म्हारा साहिवा।।४।। चरण कमलनी चाहुं चाकरी हो राजि, अवर न चाहुं वीजी वात वारि सहारा साहिवा । मया करी ने देख्यो भूकमणी हो राजि, पासइ राखेज्यो दिन नइ राति वारि म्हारा साहिवा।।।। सेवक नी जउ भीड़ि न भांजिस्यउ हो राजि, पूरविस्यउ नहीं मन नी प्रास वारि म्हारा साहिबा । तउ कुण करिस्यई साहिब चाकरी हो राजि, तर किम लहिस्युजग सावास वारि रहारा साहिवा ॥६॥ राख्यउ पारेवउ सरणइ आपणइ हो राजि, आप्यु तेहनइ निरभय दान चारि म्हारा साहिबा । मुझनइ तिम सरणइ राखीज्यो हो राजि, ताहरउ जिन हरखई राखुध्यान वारि म्हारा साहिवा।।७।।
श्री शांतिनाथ-स्तुति । ढाल-धन वन संप्रति सावउ राजा । एहनो ।।। मोहन मूरति शांति जिणेसर, त्रिभुवन नयणाणंद रे । भेटतां भावठि सह माजा, महिमा एह जिणंद रे ॥१मो।। सुरनर मुनिवर कर जोड़ी नड, चरणे नामई सीस रे । स्वामि नमुना सुरग राता, करि जाणई जगदीस रे ॥रमो।। शय्यंभव दरसण थी चुम्यु, मुनिवर पार्द्रकुमार रे। जाती समरण लहइ मछ जोइ,स्वयं भू रमण मझारि रे ॥३मो।।