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________________ के ढालक १४६ आदिनाथ स्तवनानि विमलाचल मंडन आदिनाथ स्तवन श्री विमलाचल सिखर विराजइ, अनुपम आदि जिणंद । युगला धरम निवारणउ, मरुदेवा केरउ नंद ॥१॥ सनेही अरज सुणीजइ वे, अरे हां रिखमजी अरज सुणीजइवे ॥ करुणा सागर गुण वइरागर, नागइ नमइ अनेक । महीयल महिमा ताहरी गावइ, मन धरिय विवेक ।। २ स..॥ तु दुख भंजण गंजण अरियण, रंजण भवियण लोक । भाग संयोगई भेटीयउ, मेटउ हिवइ भवना सोक ॥ ३ स । पर उपगारी तु सुखकारी, अधिकारी अरिहंत । सूरति देखी ताहरी, मुझ मन लागऊ एकंत ॥ ४ स ॥ बहुत दिवस मइ सेवा कीधी, तुझ साथई मन लाइ । तउ पिणि प्रभुजी ताहरि, मई मउज न पामी काइ ॥ ५ स.॥ साहिवउ मुझ आस न पूरउ, जउ न करउ वगसीस । तउ पिणि माहरही तु घणी, वाल्हेसर विसवावीस ॥ ६स.।। साचा पाच सरिखा साजन, खोटा काच न थाई । पालइ पूरि प्रीतड़ी, खल खंच न राखड़ काइ ॥ ७ स.॥ सेवा करतां धरतां हीयडई, तउही न सीझइ काज । सोचि विचारि जोइज्यो तुझ, नइ वह ए लाज ॥८ स.॥ मन वंछित पूरउ दुख चूरउ, सेवक सुधरि नेह । कहई जिनहरख कृपा करउ, आपउ अविचल शिव गेह ।। 8 स. ॥ इति श्री विमलाचल मंडण आदिनाथ स्तवनं ।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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