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जिनहर्ष-ग्रन्थावली
१३३ सेवक जाणी आस्या पूरवउ, सहु सुनिज संपति नउ सीर । अवगुण देखी छेह न राखवइ, गरूआ जेह गंभीर ॥६श्री॥ परम सनेही तु परमातम, दउलति दायक तु दीवाण । तुतउ माहरा सिरनउ सेहरउ,तुतउ माहरउ वल्लभ प्राण॥७॥ मव मव माहे मइ भमता थकां, पाम्या चउगति भ्रमण अपार । भ्रमण निवारउ तारउ साहिबा, तुम नइ दाखुचारोवार ॥श्री।। सोवन वरण सरुप सुहामणउ, पांचसइ धनुप शरीर ॥ आउ चउरासी पूरव लखनउ, निर्मल गुण प्रभुना जिम खीर॥६॥ श्री शत्रुजय गिरि महिमा निलउ, मरुदेवा उअरई अवतार । 'नामि कुलांबुज दिनकर सारिखउ, जुगला धरम निवारण हार ।१० सूरति मूरति प्रभुनी जोवतां, नयणे अधिक सुहाइ । राति दिवस जाणु पासइ रहु, सेव॒ प्रभुजी ना हु पाय ॥११॥ मन मधुकर तुझ चरण कमल रसई, होय रह्यउ लयलीण । पाणी वल पिणि न रहइ वेगलउ, दूरि रहइ तउ थायइ खीण ।१२ संवत सतरइ पचतालइ समइ, मून इग्यारस दिन सुविहाण । कहइ जिनहरष विमलगिरि भेटीयउ,यात्राचड़ी माहरी परमाण।१३
॥ इति श्री शत्रुञ्जय मंडण श्री रिपभदेव स्तवनं ॥ . श्री शत्रुञ्जय मंडण श्री आदिनाथ लघु स्तवन
___ ढाल-जीहो मिथला नगरी नउ राजीवउ-ए देशी ___जी हो आज मनोरथ माहरा , जी हो सफल थया जिनराय ।
जी हो आज दशा जागी भली, जी हो भेट्या प्रभुना पाय ॥१॥