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मातृका-बावनी झूरें कहा धन काज अग्यानि रे झुरें कहा धन आई मिलेगो,' जो धन की चित चाहि धरें तो करे न क्यु पुन्य तुरत्त फलेगी। सुख को मूल गह्य सुख पाइए मूल विना फल केसे तू लेगी, पुन्य किया जसराज नवे निद्धि सुख सरोवर मांहि मिलेगो ।३० नारि के कारण रावण कू रघुपनि हरयो गढ लंक लियो हे; .. नारि के कारण पांडव मू पनोत्तर राय संग्राम कियो हैं । नारि के कारण भ्रात हण्यो युगवाहु सनेह विडार दियो हे, नारि जसा अनरत्थ को कारण जोउ तजे जग में सुखियो हे।३१। टेक न छोरि न छोरी रे नायक टेक अलि प्रभुता पद पायें, टेक थें रिद्ध नवे निद्धि संपद कीरति लोक जगत्त में गावें। प्राण की हांण जो होड तो होण, टेक गड कव फिहिनादे टेक को मांणम होइ जसा विणी टेक पम् उपमान कहाचें ॥३२॥ ठार के नीर कुभ भरातन वातन सुन बरे निपजें हैं, धान विना नवि जीयत बाल दलिद्र विना धन सो तो न जे हैं। चांम चिर्ये विन लोहु दिखांतन दांन बिना सनमान भनें हैं, सुख की आस धरे मन में जसराज उपाय तो दूरि तजें हैं ।३३] डरीय नहि भूत पिसाच तहें कहा भूत पिसाच करें वपरो, रन वन्न भयंकर मांहि कहा डर चोर मिल तो गहें कपरो। समसांण हैं राण परि जहां प्रांण जहां डर होइ न कोई खरो, डरीय विणु मांन लह्य जसराज अकाज मनुष्य करे निखरो।३४