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वीशी पूरि मनोरथ प्रभुजी माहरा रे,
तु तउ सहुनर छइ हितकार। बीजा जिनवर कहुँ जिनहरष नह रे, एतउ देई दरसण दिल ठारि ॥६॥
बाहु-जिन-स्तवन ढाल-उचा ते मदिर मालीया नड, नीचडी सरोवर पाली
रे माइ ए देशी। रामति रमिवा हूं गई, मोरी सहीयर केरइ साथी रे माइ ।
समोअसरण मां सोभता,
मइ दीठा श्री जगनाथ रे माइ ॥१॥ रूपद तउ प्रभु रलीयामणा, रवि प्रतपइ कोडी निलाडि रे माइ ।
चार गुणउ प्रभु ऊपरई ,
असोक विराजइ झाड रे माइ ॥२॥ ममवसरण मां देवता करइ, कुसम वृष्टि ततकाल रे माइ ।
साकर पांहई अति घणु', मीठी वाणी सुविलास रे माइ ॥३॥