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जिन सिद्धान्त
उत्तर--वेदनीय कर्म के दो भेद हैं-(१) साता वेदनीय, (२) असाता वेदनीय ।
प्रश्न--मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो आत्माके श्रद्धा व चारित्र गुणका विकास न होने देवे उस कर्म का नाम मोहनीय कर्म है।
प्रश्न-मोहनीय कर्म में कितने मेद हैं ?
उत्तर-मोहनीय कर्म के दो भेद हैं-(१) दर्शन, मोहनीय, (२) चारित्रमोहनीय ।
प्रश्न-दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो आत्मा को सम्यक्श्रद्धा होने में बाधा डाले उस कर्म को दर्शन मोहनीय कर्म कहते हैं।
प्रश्न--दर्शनमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ?
उत्तर-दर्शनमोहनीय कर्म के तीन भेद हैं(१) मिथ्यात्व, ( २ ) सम्यगत्वमिथ्यात्व, (३) सम्यक्त्व प्रकृति । ,
प्रश्न--मिथ्यान्व किसे कहते हैं ? 'उत्तर-जिस कर्म के उदय से जीव के अतत्व श्रद्धान हो, उस कर्म को मिथ्यात्व कहते हैं।
प्रश्न- सम्यक् मिथ्यात्व किसे कहते हैं ?
उत्तर--जिस कर्म के उदय से मिले हुए परिणाम हों, जिनको न तो सम्यक्तरूप कह सकते हैं न मिथ्यात्व