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[जिन सिद्धान्त
कि इस शास्त्र को किस अभिप्राय से प्रकाशित कराया गया । तब कहना होगा कि बहुत जीवों को लाभ हो सकता है । इससे स्वयं सिद्ध हुआ कि इस शास्त्र के पढ़ने से बहुत जीवों की पर्याय सुधर सकती है और न पढ़ने से सुधर नहीं सकती है । तब पर्याय क्रमबद्ध कहाँ रही ?
प्रश्न-एक साथ जीव में एक भाव होगा या विशेष।
उत्तर-एक जीव में एक साथ पांच भाव हो सकते हैं (१) प्रौदयिक भाव (२) क्षयोपशम भाव (३) उपशम भाव (४) नायिक भाव (५) पारणामिक भाव । एक भाव में दूसरे भाव का अन्योन्य-अभाव है, तब कौन से भाव की अवस्था को क्रमबद्ध पर्याय कहेंगे यह शान्ति से विचारना चाहिए । जो महाशय क्रमबद्ध ही पर्याय कहते हैं उनको शान्ति से पूछिये कि आप में पांच भाव कैसे होते हैं, फिर उन्हीं से पूछिये कि पांच भाव में कौन सा क्रमबद्ध भाव है । जिस जीव को भार का ज्ञान नहीं है वह तो स्वयं अप्रतिबद्ध है ही और दूसरे जीव को भी अप्रतिबुद्ध होने में कारण पड़ता है उस जीव की कौन सी गति होगी? यह तो सांपछुछुन्दर की सी गति हो रही है। यदि क्रमबद्ध ही पर्याय होती है तो पुरुषार्थ करने का उपदेश क्यों दिया जाता है एवं सत्-समानम करो,