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जिन सिद्धान्त उदीरणा भाव का है। अबुद्धि पूर्वक राग में कर्म का उदय कारण है और तप आत्मा का भाव कार्य है। बुद्धि पूर्वक राग में अर्थात् उदीरणा भाव में आत्मा का भाव कारण है और सत्ता में से कर्म का उदयावली में आना कार्य है, यह दोनों में अन्तर है।
प्रश्न-उदीरणा भाव में कार्य हुए बाद निमित्त कैसे कहा जाता है ? ____ उत्तर-संसार के सभी पदार्थ ज्ञेय रूप हैं । उस ज्ञेय को नोकर्म कहा जाता है, परन्तु आत्मा स्वयं ज्ञेय को ज्ञेय रूप न जानकर उसको अपने रागादिक में निमित्त बना लेता है। इसी कारण रागादिक हुए बाद निमित्त कहा जाता है।
शंका-कैसे निमित्त कहा जाता है, इसे दृष्टान्त देकर समझाईये।
समाधानः-(१) जैसे देन की मूति देखकर आप भक्ति का राग करते हैं परन्तु मूर्ति राग कराती नहीं है, भक्ति किए बाद इस देव की मक्ति करी ऐसा कहा जाता है। जैसा राग भक्ति का आपमें हुआ ऐसा राग मूर्ति में नहीं हुआ है अर्थात् निमित्त में नहीं हुआ। ऐसे भाव का नाम निमित्त उपादान सम्बन्ध है। अर्थात् जिसको