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राग-सारंग। तन देख्या अथिर घिनावना ॥ तन० ॥ टेक ॥ वाहर चाम चमक दिखलावै, माही मैल अपावना । वालक ज्वान बुढ़ापा मरना, रोगशोक उपजावनातन० ॥१॥ अलख अमूरति नित्य निरंजन, एकरूप निज जानना । वरन फरस रस गंध न जाके, पुन्य पाप विन मानना ॥ तन० ॥२॥ करि विवेक उर धारि परीक्षा, भेद-विज्ञान विचारना । वुधजन तनतें ममत मेटना, चिदानंद पद धारना ॥ तन० ॥३॥
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राग-सारंग लूहरि। ... तेरो करि लै काजवखतफिर ना तेरो०॥टेकनरभव तेरे वश चालत है, फिर परभव परवश परता ॥ तेरो० ॥१॥ आन अचानक कंठ दवैगे, तव तोकौं नाहीं शरना। यात विलमन ल्यायवावरे, अवही कर जो है करना। तेरो० ॥२॥सवजीवनकी दया धार उर, दानसुपात्रनि कर धरना। जिनवर पूजि शास्त्र सुनि नित प्रति, वुधजन संवर आचरना ।। तेरो० ॥३॥
(३९) राग-लहरि मीणांको चालमें। 0 अहो ! देखो केवलज्ञानी, ज्ञानी छवि भली या विराजै हो-भली या विराजै हो ॥ अहो० ॥ टेक ॥ सुर नर मुनि याकी सेव करत हैं, करम हरनके काजै हो ॥ अहो.