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श्रीजिनाय नम ।
जैन पदसंग्रह | तृतीयभाग | अर्थात् कविवर भूधरदासजीकृत भजनोंका संग्रह |
१. राग सोरठ । लगी लो नाभिनंदनसों | जपत जेम' चकोर चकई, चन्द भरताकों ॥ लगी लो० ॥ १ ॥ जाउ तन धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों । एक प्रभुकी भक्ति मेरे, रहो ज्योंकी त्यों ॥ लगी लो० || २ || और देव अनेक सेये, कछु न पायो हों । ज्ञान खोयो गांठको, धन करत कुंवनिज ज्यों ॥ लगी लो० ॥ ३ ॥ पुत्र मित्र कलत्र ये सब सगे अपनी गौं । नरककूपउद्धरन श्रीजिन, समझ भूधर यों | लगी लो० ॥ ४ ॥
९ बुरा व्यापार । २ गरज |