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________________ तृतीयभाग। ३९ काया० ॥३॥ यासौं ममत निवारकैं, नित रहिये प्रभु अनुकूल हो । भूधर ऐसे ख्यालका भाई, पलक भरोसा भूल हो || काया० ॥ ४ ॥ ५६. राग ख्याल बरवा। ("देखनेको आई लाल मै तो तेरे देखनेको आई" यह चाल ।) म्हें तो थाकी आज महिमा जानी ॥ टेक ॥ अव लों नहिं उर आनी ॥ म्हें तो० ॥ १ ॥ काहेको भव वनमें भ्रमते, क्यों होते दुखदानी ।। म्हें तो० ॥ २ ॥ नामप्रताप तिरे अंजनसे, कीचकसे अभिमानी ॥ म्हें तो० ॥ ३ ॥ ऐसी साख वहुत सुनियत है, जैनपुराण वखानी॥ म्हें तो० ॥ ४ ॥ भूधरको सेवा वर दीजे, मैं जांचक तुम दानी ॥ म्हें तो० ॥ ५॥ ५७. राग विहाग । अरे मन चल रे, श्रीहथनापुरकी जातं ॥ टेक ।। रामा रामा धन धन करते, जावै जनम विफल रे ॥ अरे० ॥१॥ करि तीरथ जप तप जिनपूजा, लालच वैरी दल रे ।। अरे० ॥२॥ १ यात्राको । २ स्त्री।
SR No.010377
Book TitleJainpad Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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