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जैन पदसग्रहचित आरूढ़ करो प्रभु ऐसें, खोय गुंड़ी परिनामकी ॥ जपि० ॥३॥ कर्म वैरि अहनिशि छल जो३, सुधि न परत पल जामकी । भूधर कैसैं बनत विसारे, रटना पूरन रामकी ।। जपि० ॥४॥
४५. राग मलार। . - वे मुनिवर कब मिलि हैं उपगारी ॥ टेक ।। साधु दिगम्बर नगन निरम्बर, संवरभूषणधारी ।। वे मुनि० ॥ १॥ कंचन काच बराबर जिनकै, ज्यौं रिपु त्यौं हितकारी । महल मसान मरन अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ।। वे मुनि० ॥२॥ सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी । शोधत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ॥ वे मुनि० ॥३॥ जोरि जुगल कर भूधर विनवै, तिन पद ढोक हमारी। भाग उदय दरसन जव पाऊं, ता दिनकी बलि हारी|| मुनि ॥४॥
४६. राग धमाल सारंग। होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त ॥ १ रातदिन । २ महिमा, बडाई । ३ गाली-1,४ जलाई।