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जैन पद संग्रह
होसी, परमदशा हमरी ॥ टेक ॥ धारि दिगंबर दीक्षा सुंदर त्याग परिग्रह अरी । वनवासी कर पात्र परीषह, सहि हों धीर धरी ॥ सफल० ॥ १ ॥ दुर्धर तप निर्भर नित तप हौं, मोह कुवृक्ष करी । पंचा'चारक्रिया आचर ही, सकल सार सुथरी ॥ सफल० ॥ २ ॥ विभ्रमतापहरन झरसी निज, अनुभव-मंत्रझरी । परम शान्त भावनकी तातें, होसी वृद्धि खरी || सफल० ॥ ३ ॥ सठिप्रकृति भंग जय होसी जुत त्रिभंग सगरी । तव केवलदर्शनविबोध सुग्व, वीर्यकला पसरी ॥ सफल ३ ॥ ४ ॥ लखि हो सकल द्रव्य गुनपर्जय, परनति अति गहरी । भागचन्द्र जब सहजहि मिल है, अचल मुकति नगरी ॥ सफल ० · 11 G 11
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राग सोरठ |
जे दिन तुम विवेक विन खोये ॥ टेक ॥ मोह वारुणी पी अनादितैं, परपदमें चिर सोये । सुखकरंड चितपिंड आपपद, गुन अनंत नहिं जोये । जे दिन० ॥ १ ॥ होय बहिर्मुख ठानि राग रुख, कर्म वीज बहु बोये । तसु फल सुख दुख सामिग्री लखि, चितमें हरषे रोये || जे दिन० ॥ २ ॥ धवल ध्यान शुचि सलिलपूरतें, आस्रव मल- नहिं धोये । परद्रव्यनिकी 'चाह न रोकी, विविध परिग्रह ढोये ॥ जे दिन० ॥