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प्रथमभाग।
११३ जामें जन, भ्रमत भरत दुख भारी । मत०॥१॥ रामा मा, मा बामा, सुत पितु, सुता श्वसो, अवतारी । को अचंभ जहां आप आपके पुत्र दशा विस्तारी॥ मत राचो० ॥२॥ घोर नरक दुख और न छोर नलेशन सुख विस्तारी।सुरनर प्रचुर विषयजुर जारे, को सुखिया संसारी॥ मत राचो० ॥३॥ मंडल द्वै आँखंडल छिनमें, नृप कृमि, सधन भिखारी। जा सुत विरह मरी द्वै वाघिनि, ता सुत देह विदारी ॥ मत राचो० ॥४॥ शिशु न हिताहितज्ञान तरुन उर, मदनदहन परजारी । वृद्ध भये विकलांगी थाये, कौन दशा सुखकारी? ॥ मत राचो० ॥५॥ यो असार लख छार भव्य झट, भये मोखमगचारी । यातें होउ उदास दौल अव, भज जिनपति जगतारी ।। मत० ॥ ६ ॥
१२२. नित पीज्यो धीधारी, जिनवानि सुधार्सम १ स्त्री । २ वहिन । ३ कुत्ता । ४ देव । ५ लट । ६ कामाग्नि । ७ जनशास्त्रोंको । ८ अमृतसमान ।
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