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प्रथमभाग। लाल० ॥ टेक ॥ इक दिन सरस वसंतसमयमें, केशवकी सब नारी । प्रभुप्रदच्छनारूप खड़ी है, कहत नेमिपर वारी । लाल० ॥१॥ कुंकुम लै मुख मलत रुकमनी, रँग छिरकत गांधारी । सतभामा प्रभुओर जोर कर, छोरत है पिचकारी ॥ लाल० ॥२॥ व्याह कबूल करो तौ छूटौ, इतनी अरज हमारी । ओंकार कहकर प्रभु मुलके, छाँड़ दिये जगतारी ।। लाल. ॥३॥ पुलकितवदन मदनपितु-भामिनि, निज निज सदन सिधारी । दौलत जादववंशव्योमशशि, जयो जगतहितकारी ॥ लाल० ॥ ४ ॥
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शिवपुरकी डॅगर समरससों भरी, सो विषयविरस-रचि चिरविसरी । शिव०॥ टेक ॥ सम्यकदरश-बोध-व्रतमय भव, दुखदावानल मेघ
१ स्वीकार । २ मगनप्रति-ऐसा भी पाठ है । मदनपितुभामिनि-मदन अर्थात् प्रद्युम्न कामदेवके पिता श्रीकृष्णकी खियें। ३ 'जादववंशव्योममणि' ऐसा भी पाठ है । जदुवंशरूपी आकाशके चन्द्रमा नेमिनाथ भगवान् । ४ मार्ग।