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________________ इस संग्रहमें पंजाबी भाषाके कई एक पद ऐसे छाप दिये गये हैं, जो मूर्ख लेखकोंकी कृपासे रूपान्तरिक हो गये हैं और पंजाबी भाषा नहीं जाननेसे हमारे द्वारा उनका संशोधन ठीक ठीक नहीं हो सका है। आशा है कि, इस विषयमें पाठक हमको क्षमा प्रदान करेंगे। ___ इस संग्रहकी प्रेसकापी हमारे एक इन्दौरनिवासी मित्रने इ. न्दौरके जैनमन्दिरकी. एक हस्तलिखित प्रतिपरसे करके भेजी है और उसका संशोधन हमने अपने पासकी एक दूसरी प्रतिपरसे किया है। बस इन दो प्रतियोंके सिवाय बुधजनविलासकी और कोई प्रति हमें नहीं मिल सकी। ___ कविवर बुधजनजीका यथार्थ नाम पं० विरधीचन्दजी था। आप खंडेलवाल थे और जयपुरके रहनेवाले थे । आपके बनाये हुए चार ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं और वे चारों ही छन्दोबद्ध हैं। १ तत्त्वार्थबोध, २ बुधजनसतसई, ३ पंचास्तिकाय, और .४ बुधजनविलास ।ये. चारों ग्रन्थ क्रमसे विक्रम संवत, १८७१-८१-९१ और ९२ में बनाये गये हैं। बस आपके विषयमें हमको इससे अधिक परिचय नहीं मिल सका। बम्बई-चन्दावाड़ी। श्रावणकृष्णा८श्रीवीर नि० २४३६ । नाथूराम प्रेमी।
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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