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जैनपदसंग्रह। हो । ये विषयासुखको करैं; अनुभवसुख सिरदार हो ॥ आतम० ॥ ७ ॥ इंद फनिंद नरिंदके, भाव सराग विथार हो। धानत ज्ञान विरागते, तद्भव मुकतिमँझार हो ॥ आतम० ॥८॥
३०८1 जानौं पूरा ज्ञाता सोई ॥ जानों० ॥ टेक ॥रागी नाहीं रोषी नाहीं, मोही नाहीं होई ॥ जानौं० ॥१॥ क्रोधी नाहीं मानी नाहीं, लोभी धी ना ताकी । ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, वानी मीठी जाकी ॥ जानौं। ॥२॥ सांई सेती सच्चा दीसै, लोगोंहूका प्यारा । काहू जीका दोषी नाहीं, नीका पैंडा धारा ॥ जानौं ॥३॥ काया सेती माया सेती, जो न्यारा है भाई । धानत ताको देखै जान, ताहीसों लौ लाई ॥ जानौं० ॥ ४ ॥
.३०९। : प्रभुजी प्रभू सुपास ! जगवासतें दास निकास ॥ प्रमु०॥ टेक ॥ इंदके खाम फनिंदके खाम, नरिंदके चन्दके खाम । तुमको छांड़के किसपै जायें, कौनका ढूंदें धाम ॥ प्रभु० ॥ १ ॥ भूप सोई दुख दूर करै है, साह सोई दै दान । वैद सोई सव रोग मिटावै, तुमी सवै गुनवान ॥ प्रभु० ॥२॥ चोर अंजनसे तार लिये हैं, जार कीचकसे राव । हम तो सेवक सेव करै हैं, नाम १ बुद्धि ।