________________
जैनपदसंग्रह ।
२८३।
भजो जी भजो जिनचरनकमलको, छोड़ि विषय आमोद जी ॥ भजो० ॥टेक ॥ भाग उदय नरदेही पाई, अव मत जाहि निगोदै जी ॥ भजो० ॥१॥ विषय भोग पाहनके वाहन, भव-जलमाहिं डवो दै जी । धानत और फिकर तज भज प्रभु, जो चाहै सो सो दै जी ॥ भजो० ॥२॥
/२८४। • लगन मोरी पारससों लागी ॥ लगन० ॥ टेक ॥ कमठ-मान-भंजन मनरंजन, नाग किये वड़भागी ॥ लगन० ॥१॥ संकट चूरत मंगल मूरत, परम धरम अनुरागी । धानत नाम. सुधारस स्वादत, प्रेम भगति मति पागी ॥ लगन० ॥२॥
१२८५। वे साधौं जन गाई, कर करुनासुखदाई ॥०॥टेक॥ निरधन रोगी प्रान देत नहि, लहि तिहुँ जगठकुराई ॥ ३० ॥१॥ कोड़ रास कन मेरु हेम दे, इक जीवध अधिकाई ॥ वे० ॥ २ ॥ धाननु तीन लोक दुख पावक, मेघझरी वतलाई ॥ वे० ॥३॥
२८६ । । . __ आरसी देखत मन आर सी लागी ॥ आरसी० ॥
१ सुवर्ण । २ सुईसी चुभ गई।