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प्रथमभाग ।.
विराग ज्ञानमय तुमजा, ने विन काज सखो ना ॥ मोहि० ॥ ४॥मो सम पतित न और दयानिधि, पैतिततार तुम सोना । दौलतनी अरदास यही है, फिर भववास वसों ना ॥ मोहि०॥५॥
२८.
मैं आयो, जिन शरन तिहारी। मैं चिरदुखी विभावभावतें, स्वाभाविक निधि आप विसारी॥ मैं० ॥१॥ रूप निहार धार तुम गुन सुन, वैन होत भवि शिवमगचारी । यो ममकारजके कारन तुम, तुमरी सेव एव उरधारी ।। मैं० ॥२॥ मिल्यो अनंत जन्मतें अवसर, अब विनऊं हे भवसरतारी । परमें इष्ट अनिष्ट कल्पना, दौल कहै झट मेट हमारी॥ मैं० ॥३॥ ..
मैं हरख्यो निरख्यो मुख तेरो। नॉसान्यस्तनयन भ्रूहेलय न, वयन निवारन मोह अंधेरो ।। मैं०॥१॥ परमें कर मैं निजबुधि अबलों, भव
१ पापी २ पापियोंका तारनेवाला । ३ अर्जी । ४ नासिकापर लंगाई है दृष्टि जिसने ५ हिलते नहीं हैं। ...
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