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चतुर्थभाग । प्राण गये पछितैहै मनवा, छिन छिन छीजै आवे रे ।। अरहंत० ॥२॥ जुवैती तन धन सुत मित परिजन, गज तुरंग रथ चाव रे । यह संसार सुपनकी माया, आंख मीचि दिखराव रे ॥ अरहंत० ॥३॥ ध्यान ध्याव रे अब है दावरे, नाहीं मंगल गाव रे । धानत वहुत कहां लौँ कहिये, फेर न कछू उपाव रे ॥ अरहंत०॥४॥
२७॥
चन्दौ नेमि उदासी, मद मारिवेकौं ॥ टेक ॥ रजमतसी जिन नारी छाँरी, जाय भये वनवासी ॥ वन्दौं० ॥१॥ हय गय रथ पायक सब छोड़े, तोरी ममता फाँसी । पंच महाव्रत दुद्धर धारे, राखी प्रकृति पचासी ॥ वन्दौं०॥२॥जाकै दरसन ज्ञान विराजत, लहि वीरज सुखरासी । जाकौं वंदत त्रिभुवन-नायक, लोकालोकप्रकासी ॥ वन्दौं० ॥३॥सिद्ध शुद्ध परमातम राजै, अविचल थान निवासी । धानत मन अलि प्रभु पद-पंकज, रमत रमत अघ जाँसी ॥ वन्दौं॥४॥
२८ । आतम अनुभव कीजै हो ॥ टेक ॥ जनम जरा अरु मरन नाशक, अनत काल लौ जीजै हो ॥ आतम० . १ आयु । २ स्त्री। ३ मित्र। ४ नौकरचाकर। ५ भ्रमर । ६ नाश होगा।
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