SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) पदसंख्या पृष्ट पदसंख्या ११९ देखो नाभिनन्दन जग० २३६ / ६७ पायो जी मुख मातम १३१ १२४ देखे धन्य घरी २५२ / १२५ पावापुर भवि बन्दा २५६ ध। |१२२ प्यारे नमतों प्रेम किया २४८ २१ धनि ते साधु रहत वनमा० ४० ३३ प्राणी लाल धरन अगाऊ ६२ ३. धनि धनि ते मुनि गिरि० ५७, ८० प्राणी लाल छोड़ो मन १५४ २७ धिक धिक जीवन समकि० ५० ९० प्रानी यह संसार असार १६५ १०५ प्राणी सोहं सोहं ध्याय हो १९४ २४ नहिं ऐसो जनम वारंवार ४६१०६ प्राणी तुन तो आप मु. १६८ १४५ नगरमें होरी हो रही हो ३१०/१४८ प्राणी मातमरूप अनूप ३१७ १११ निज जतन करो गुन० २१४/११९ पिय वैराग्य लियो है २३७ ११५ निरविकलप जोति प्रका० २२७/११९ पिय वैराग लियो है २३८ ३४ नेमि नवल देखें चल री १३ १४५ पिया विन को खेलों. ३१२ १०६ नेमिजी तो केवलज्ञानी १९६ १२१ नेमि मोहि आरत तेरी २४४ ३८ फली वसन्त नह आदी० ७२ १४१ नेमीश्वर खेलन चले ३०५/ १५ यन्दी नेमि उदासी १७ परमगुरु वरसत ज्ञान. ३० ३. यसि संसार में ९९ परमेसुरकी कैसी रीत १७७ ४९ वन्दे तू वन्दगी कर याद ९३ ११४ परमारथपंथ सदा पक. २२३, ४९ वन्दे तू बन्दगी ना भूल ९४ २९ प्रभु अव हमको होहु स. ५५१०७ वीतत ये दिन नीके हमको२०० ३२ प्रभु में किहि विधि शु. ६०/७१ चे कोई निपट अनारी. १३९ ५१ प्रभु तेरी महिमा किहि ९८ ५२ प्रभु तेरी महिमा कही न ९९! ११ भम्यो जी भन्यो संसार० २० ५२ प्रभु तुम सुमरनहीमें तारे१००, ३३ भजनी आदिचरन मन० ६१ १२७ प्रभु तुम चरन शरन० २६२/ ३४ भवि पूजो मनवच श्रीजि. ६४ १२९ प्रभु तुम नैननगोचर २६८ ६१ भवि कीजेहो भातम सँभार११७ १३६ प्रभुजी मोहि फिकर भ० २९१, ७९ भजि मन प्रभु श्रोनेमिको १५३ १४४ प्रभु जी प्रभू सुपास ३०९ ८४ भजो आतम देव रे जि० १५९ फ।
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy