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जैनपदसंग्रह आदि प्रजा प्रतिपाली, सकल जननकी आरति । टाली ॥ आरती० ॥ १॥ वांछापूरन सबके खामी, प्रगट भये प्रभु अंतरजामी ॥ आरती० ॥२॥ कोटभानुजुत आभा तनकी, चाहत चाह मिटै नर्हि तनकी ॥ आरती० ॥३॥ नाटक निरखि परम पद ध्यायो, राग थान . वैराग उपायो॥ आरती० ॥ ४॥ आदि ज..
गतगुरु आदि विधाता, सुरंग मुकति मारगके दाता ॥ आरती० ॥ ५॥ दीनदयाल दया अब कीजे, भूधर सेवकको ढिग लीजे॥ आरती० ॥६॥. . . . . . . . . . : ... ६९. राग सलहामारू। . . .
सुनि सुनि हे साथनि! म्हारे मनकी बात। सुरति सखीसों सुमति राणी यों कहै जी । बीयो है साथनि मारी ! दीरघकाल, म्हारो सनेही म्हारे घर ना रहै जी ॥१॥ना व. रज्यो रहै साथनि म्हारी चेतनराव, कारज .. अधम अचेतनके करै जी। दुरमति है साथनि
म्हारी जात कुजात, सोई चिदातम पियको