________________
तृतीयंभाग।
२१ धीर धरौं री । पर घर हाँडै निज घर छांडे, कैसी विपति भरों री ।। हूं तो० ॥२॥ कहत कहावतमें सब यों ही, वे नायक हम नारी पै सुपर्ने न कभी मुँह बोले, हमसी कौन दुखारी ।। हूं तो० ॥३॥ जइयो नाश कुमति कुलटाको, विरमायो पति प्यारो। हमसौं विरचि रच्यो रंग बाके, असमझ (?) नाहिं हमारो॥हूं तो० ॥॥ सुंदर सुघर कुलीन नारि में, क्या प्रभु मोहि न लोरें । सतह देखि दया न धरै चित, चेरीसों हित जोरें ।। हूं तो० ॥५॥ अपने गुनकी आप वड़ाई, कहत न शोभा लहिये । ऐरी! वीर चतुर चेतनकी, चतुराई लखि कहिये ॥ हूं तो० ॥॥ करिहों आजि अरज जिनजीसों, प्रीतमको समझावें । भरता भीख दई गुन मानौं, जो बालम घर आ ॥ हूं तो० ॥७॥ सुमति वधू यौं दीन दुहागनि, दिन दिन झुरत निरासा । भूधर पीउ प्रसन्न भये विन, चसै न तिय घरवासा ।। हूं तो० ॥८॥
१ भटकै. २ प्रेम करें.
Riya