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हजूरी पद-संग्रह। घरोजी॥ आदि०॥१॥ काल अनादि वस्यो जगमाही, तुमसे जगपति जाने नाहौँ। पॉप न पूजे अंतरजामी, यह अपराध क्षमाकर खामी ॥ आदि० ॥२॥ भक्तिप्रसाद परम पद है है, बंधी बंधदशा मिटि जैहै । तबन करों तेरी फिर पूजा, यह अपराध छमो प्रभु दूजा।। ॥ आदि०॥३॥ भूधर दोष किया बकसावे, अरु आगैंको लारे लावै। देखो सेवककी ढिठंवाई, गरुवे साहिबसौं बनियाई ॥ आदि०॥ ॥४॥
६५ । राग ख्याल करवा । म्हे तो थांकी आज. महिमा जानी, अबलौं उरनहिं आनी । म्हेतो० ॥ टेक ॥ काहेको भववनमें भ्रमते, क्यों होते दुखथानी ॥म्हेतो॥१॥ नामप्रताप तिरे अंजनसे, कीचकसे अभिमानी . ॥ म्हेतो० ॥२॥ ऐसी साख बहुत सुनियत है,
१ माफ कराता है। २ धीटताः। ३ बडेमारी मालिकसे भी। ४ बनियापन । करता है।