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जैनपदसागर प्रथमभाग
घटमंदिर, बसहु सदा जयवंत ॥ तुमगुन ०४ ४४ । राग जंगला |
म्हांके जिनमूरति हृदय बसी बसी ॥ टेक ॥ यद्यपि करुणारसमय तद्यपि, मोहशत्रुहन-असी: असी || महांके || २ || भामंडल ताको अति निर्मल, निष्कलंक जिम ससी ससी ॥ म्हां कै० ॥ ॥ २ ॥ लखत होत अति शीतलमति जिम, सुधाजलधिमैं घसी घसी ॥ म्हांकै० ॥ ३ ॥ भागचंद जज ध्यानमंत्रसों, ममता नागन नसी नसी ॥ म्हाँकै ॥ ४ ॥
४५ । राग सोरठ।
.. इष्ट जिनकेवली, म्हांकै इष्टजन केवली, जिन सकल कलिमल दली ॥ टेक ॥ शांत छबि जिन की विमल जिम, चंद्रदुति मंडली | संत-जनः मन के कि-तर्पन, सघन घन पोटली ॥ इष्टजिन ॥ १ ॥ स्यात्पदांकित धुनि सु. जिनकी, बंदनतें
*. १६१. मानरूपी मयूरको खुश करनेके लिये । २ मेघपटलं । ३ स्याद्वाद से चिह्नित ।