________________
-
-
हजूरी पद-संग्रह। न कीजै वेगि निवारो, दौलतणी भवफेरी जी ॥ तुम०॥४॥
(३८) जय वीर जिनवीर जिनवीर जिनचंद,कलानिकंद मुनिहदसुखकंद॥जयगाटेका सिद्धारथ नंद त्रिभुवनको दिनेंद चंद, जावचकिरन भ्रमः तिमिरनिकंद । जय०॥१॥ जाके पद अरविंद सेवत सुरेंद्र बूंद, जाके गुन रटत फटत भवन फंद ॥ जय० ॥२॥ जाकी शांतमुद्रा निरखत. हरखत रिखि, जाके अनुभवत लहत चिदानंद
जय॥३॥ जाके घातिकर्म विघटत प्रघटत भये, अनंतदरस-वोध-वीरज-अनंद॥जय० ॥४ लोकालोकज्ञाता पै स्वभावरत राता प्रभु, जगको कुशल-दाता त्राताप अद्वंद ॥ जय० ॥५॥ जाकी महिमा अपार गणी न सके उचार, दौलत नमत सुख चहत अमंद ॥ जय० ॥६॥
(३९) जय श्रीरिषभजिनंदा, नासतो करौखामी मेरे