________________
५० जैनपदसागर प्रथमभागअमतम-झपन । नीच कीचक कियो मीचते रहित जिम,दासको पास ले नाश भवपासपन ॥ अहो नमि०॥४॥
(३२) भु मोरी ऐसी बुधि कीजिये, रागदोष दावानलसे बच, समतारसमें भीजिए॥ प्रभु०॥ टेक॥ परमै त्याग अपनपोनिजमें, लागन कबहूं लीजिए। कर्मकर्मफलमांहि न राचत, ज्ञानसुधारस.पीजिए ॥ प्रभु०॥१॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान चरननिधि, ताकी प्रापति कीजिए। मुझ कारजके तुम बडकारन, अरज दौलकी लीजिए। प्रभु०॥२॥
(३३). 'हेजिन तेरोसुजसं उजागर गावत हैं मुनिजन बानी, हे जिन० ॥ टेक ॥ दुर्जय मोह-महा-भट जाने, निज-नस कीने जगपानी । सो तुम "-१ ढक्कन २ मृत्युसे। ३ दौलतको । ४ पंचपरिवर्तनरूप संसारकी . फांस। ५ इस. पदके दौलतरामजीकृत होनेमें संदेह है । ६ न्यून होवै।