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हजूरी पद-संग्रह। ३५ पगमें ॥ अरिरज०॥ टेक ॥ जा तन अष्टोत्तर सहस्र लक्खन लखि कलिल शमै ।जा वच-दीपशिखातें मुनि विचर शिवमारगमैं । अरिरज० ॥१॥जास पासतें शोकहरनगुन, प्रगट भयो नर्गमें। व्यालमराल कुरंगसिंघको, जातिविरोध गमै ॥ अरिरज० ॥२॥ जा जस-गगन-उलं.
घन कोऊ, क्षमै न मुनीगनमैं । दौल नाम तसु • सुरतरु है या, भवमस्थलमगमैं ॥ अरि० ॥३॥
हे जिन तेरे मैं शरणै आया। तुम हो परम दयाल जगतगुरु, मैं अब भवदुखपाया॥ हे जिन ॥टेका। मोहमहादुठ घेरिरह्यो मोहि, भव कानन भटकाया। नित निजज्ञानचरननिधि विसरचो, तन धन करअपनाया है जिन०॥१॥निजा नंद अनुभव-पियूष तज, विषय हलाहल खाया। मेरी भूल मूल दुखदाई, निमितमोहविधियाया। ११ अशोक वृक्षों । २ समर्थ । ३ संसाररूपी मारवाङ्देशके बिकट मार्गमें। 2. अमृत।.
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