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२8 जैन पदसागर प्रथमभाग थानथयो शुभ वेरा । ध्यान धरै विनती करै, बानारसि बंदा तेरा, चिंतामन स्वामी० ॥४॥
कविवर दौलतरामजी कृत भज ऋषिपति ऋषभेश ताहि नित, नमत अमर असुरा । मनमर्थ-मथ दरसावतशिवपथ, वृषरथ-चक्रधुरा। भज० ॥ टेक ॥ जा प्रभुगर्भ छ मासपूर्व सुर करी सुवर्ण धरा । जन्मत सुरगिरघर सुरगनयुत हरि पयन्हवन करा ॥ भज. ॥१॥ नटत नर्तकी विलय देख प्रभु, लहि विराग सुथिरा । तबहिं देवऋषि आय नाय शिर जिनपदपुष्प धरा। भज०॥२॥ केवलसमय जास वचरविन, जगभ्रमतिमिर हरा । सुहेगबोध चारित्र-पोत लहि, भवि भवसिंधु-तरा। भज०॥३॥ योग सँघार निवार शेष विधि, १ मुनिनाथ । २ धर्मके ईस आदिनाथ भगवानको ३ । कामदेवको मथनेवाले । ४ मोक्षमार्ग। ५ इंद्र। ६ नीलांजना अप“सरा ७ लोकांतिक देव । ८ वचनरूपी सूरजने । रत्नत्रयरूपी जहाज 1.१० शेषके चार अघाति कर्म।.