________________
२ जैन पदसागर प्रथमभाग वसुविधि समिध जलाया है। श्यामलि अलिकावलि सिर सोहै, मानों धूआं उडाया है। देखोजी०॥३॥ जीवन मरन अलाभ लाभ जिन, तृणमनिको समभाया है। सुरनरनाग नहिं पद जाके, 'दौल' तास जस गाया है। देखोजी०॥४॥
(२) देखोजी इक परम गुरूने कैसा ध्यान लगाया है। देखोजी० ॥ टेक ॥ घरके भोग रोग सम लागे, बनका बास सुहाया है। काम क्रोध माया मद त्यागी, नगन जु भेष बनाया है । देखोजी० ॥१॥बरसाकाल बसत हैं तरुतर, समताभाव दिखाया है। लिपटें डांस जहर विषयाले, खेद ने मनमें ल्याया है । देखोजी०॥२॥ शीतकाल तटनीतट ऊपर, परत तुषार न छाया है। कंप देह चलै चौबारी, जैनजंती कहलाया है । देखो जी०॥३॥ ग्रीषमकाल बसें परबतपर, सूरज १। होम करनेकी लकड़ियां।